जिस जानिब से सर पर मेरे, आकर के पत्थर निकले | मुड़कर देखा जब मैंने तो, यारों ही के घर निकले | दर्द ग़मों का किसी गली में, ...
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Home / Archive for 2010
गुलाबों की कली सी मुस्कुराती हो |
चटकती सी गुलाबों की कली सी मुस्कुराती हो | किसी सरिता की कलकल सी थिरकती, खिलखिलाती हो| नयन के रास्ते आकर मेरे दिल ...
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तुम छू लो चन्दन बन जाऊं |
गंधहीन जीवन है मेरा, तुम छू लो चन्दन बन जाऊं | तुम कंचन, मैं निपट अकिंचन, जैसे हो...
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