हमने क्या क्या मंज़र देखे | ढहते - गिरते खंडहर देखे | हरे -भरे थे खेत जहाँ पर, आज वहाँ पर बंजर देखे | प्यासी नदिया, ठंडी गर्मी, सूखे हुए ...
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हिंदी के सुधी पाठकों के लिए प्रतिष्ठित कवि-गीतकार-ग़ज़लकार-अभिनेता एवं ज्योतिष विशेषज्ञ डॉo अशोक मधुप के गीत, ग़ज़ल, मुक्तक एवं कविताओं का अनूठा संग्रह |